Hi, Everyone! Here is a
post of mine that is long, long overdue.
Recently, Mrs. Manjiri
Marathe, a trustee of the Swatantryaveer Savarkar Rashtriya Smarak, made a most
extraordinary discovery: she found amongst her father’s collection a notebook
of Savarkar’s. That in itself is very wonderful; to add to it the notebook
contains two Urdu patriotic poems written by Savarkar while he was imprisoned
in the Andamans!
That Savarkar had many
languages at his command is well known. He writes in his “My Transportation for
Life” that he read the Koran in the original with the help of his Muslim
friends there. But that he could compose and write in Urdu is a novel
discovery. Undoubtedly, he is a man of many, many talents.
His notebook is on
display at the Swatantryaveer Savarkar Rashtriya Smarak opposite Shivaji Park
maidan, Mumbai, since early 2013.
The discovery of the manuscript in the words of Mr.
Ranjit Savarkar, grandnephew of Savarkar:
"The manuscript
was sent to 'Wrangler' R. P. Paranjpe by Pyaremohan, who handed it over to the
late Mr. S. P. Gokhale, an associate of Savarkar. Mr. Gokhale passed away in
2006. Mrs. Manjiri Marathe, his daughter and trustee of the Savarkar Smarak,
was informed by Mr. Ninad Bedekar, a historian, that he had seen a manuscript
having Urdu writings of Savarkar in her father's collection. As his collection
of documents and books runs into thousands, Manjiri Marathe, after many futile
visits to Pune for the search, finally succeeded in finding this
manuscript."
Description:
The first part of the
notebook is a scrapbook that includes pictures of personalities such as Shri Rama,
Shri Krishna, Jesus Christ, Buddha, Shivaji, Lokmanya Tilak, Swami Vivekananda,
and Mahatma Gandhi. The cover page is the cover of the Marathi magazine “Chitramay
Jagat.”
The two Urdu ghazals,
running into five pages, portray Savarkar's burning desire for the freedom of
his motherland, a desire that didn’t abate in the least despite the rigors of
incarceration in the Cellular Jail in the Andamans (1911 to 1921) and beyond. Except
for certain Persian words, the ghazals can be understood by anybody, and the
facing pages have their lyrics in the Devanagri script.
It also has a Hindi
poem written by him, which runs into three pages.
The noted Urdu poet
Nida Fazli, who saw the ghazals, commented, "Looking at their content and
quality, it is clear that you cannot discriminate between languages on the
basis of religion. Savarkar learnt and studied Urdu while serving a life
imprisonment term in the Andamans. He was a great patriot, which is evident
from his poetic creations."
Below are the lyrics of
the three poems, by courtesy of Swatantryaveer Savarkar Smarak:
Poem 1:
खुशी के दौर दौरे से है यां रंजों मुहन पहिलेबहार आती हैं पीछे और खिजां गिरदे चमन पहिले
मुहिब्बाने वतन होंगे हजारों बेवतन पहिले
फलेगा हिंद पीछे और भरेंगा अंदमन पहिले
अभी मेराजका क्या जिक्र, यह पहिली ही मंझिल हैं
हजारों मंजिलों करनी हैं ते हमको कठन पहिले
मुनव्वर अंजुमन होती हैं, महफिल गरम होती हैं
मगर कब जब के खुद जलती हैं, शमा-ए-अंजुमन पहिले
हमारा हिंद भी फूले फलेगा एक दिन लेकिन
मिलेंगे खाक में लाखों हमारे गुलबदन पहिले
उन्ही के सिर रहा सेहरा, उन्हीं पे ताज कुर्बा हो
जिन्होंने फाडकर कपडे रखा सिरपर कफन पहिले
न हो कुछ खौफ मरनेका, न हो कुछ फिक्र जीने की
अगर ऐ हमदमों मन में लगी हो यह लगन पहिले
हमारा हिंदभी युरोपसे ले जायेगा बाजी
तिलक जैसे मुहिब्बाने वतन हो इंडियन पहिले
न सहत की करे परवा, न हम दौलत के तालिब हो
करे सब मुल्क पर कुरबान तन मन और धन पहिले
हमे दुःख भोगना लेकिन हमारी नस्ले सुख पाने
यह मनमें ठान लें अपने ये हिंदी मर्दोजन पहिले
मुसीबत आ, कयामत आ, कहाँ जंजीरों, जिंदा हैं
यहां तैय्यार बैठे है, गरीबाने वतन पहिले
हिंदोस्ताँ मेरा
यही पाओगे मेहशरमें जबां मेरी, बयाँ मेरा
मैं बंदा हिंदवाला हूँ, यह हिंदोस्ताँ मेरा
मैं हिंदोस्ताँ के उजडे खंडहर का एक जरां हूँ
यही सारा पता मेरा, यही नामोनिशां मेरा
मेरा है रक्त हिंदी, जात हिंदी, ठेठ हिंदी हूँ
यही मजहब, यह फिर्का, यही हैं खानदाँ मेरा
कदम लूँ मादरे हिंदोस्ताँ की बैठते उठते
मेरी ऐसी कहाँ किस्मत, नसीबा यह कहाँ मेरा
तेरी सेवामें ऐ भारत अगर सर जाये तो जाये
तो मैं समझू कि हैं मरना हयाते-जाविदाँ मेरा
हमी (हम ही) हमारे वाली हैं
जीती दुनिया उसी सिकंदर पर भी जो के शेर हुआ
भागे युनानी भारत आके जो न तनीक भी देर हुआ
महाराज कहाँ वो आज श्री चंद्रगुप्त बलशाली हैं
रक्त रक्त में अपने भाई हमी हमारे वाली हैं
जापान, जावा, चीन, मेक्सिको चरणों पर था झूल रहा
जिस भारत के, देश जहाँ था हैं वो आज भी भाई वहाँ।।
सुवर्णभूमी खाना पीना, गंगा देने वाली हैं
फिर देर क्यों, उठो भाई, हमी हमारे वाली हैं।।
बीज वहीं हैं, रक्त वहीं हैं, देश वहीं हैं देवों का
सिरफ ठिलाई अपनी खुद की देती हमको हैं धोका।
एक दो नहीं। तीस कोटी हम हिंदी भाई भाई हैं
रोके हम को कौन, कौममें ताकत ऐसी आयी हैं।।
उतनेमें से एक कोटी भी होंगे जो नवयुवा खडे
धीरजमें रणमरणतेज में एक एकसे चढे बढे।
सिरफ करेंगे हुकूम, लाओ बे भारत का हैं ताज कहाँ.
पावोगे वो आजादीका ताज आज के आज यहाँ।।
हन्ता रावण का हैं अपना राम वीरवर सेनानी
कर्मयोग का देव हैं, स्वयं कृष्ण सारथी अभिमानी।
भारत तेरे रथको सेना कौन रोकनेवाली हैं
फिर देर क्यों, उठो भाई, हमी हमारे वाली हैं।
See Savarkar's "Hindustan Mera" rendered beautifully into music by singer-composer Tauseef /Akhtar:
- Anurupa
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